1. संतान उत्पत्ति करना मानव का ऐच्छिक स्वभाव है, जो अनवरत चलता रहा और भविष्य में चलता रहेगा। जिस समाज अथवा देश में पृतसत्तात्मक परिवार है उस परिवार में पुत्र का होना आवश्यक माना गया है मान्यताओं प्रथाओं के अनुसार परिवार में वंश चलाने पित्ऋण से मुक्ति पाने,पिता के चिता को मुखाग्नि देकर स्वर्ग पहुंचाने पूर्वजों के आत्माओं को मोक्ष दिलाने
याद तोहार उसमें जैसा रक्षाबंधन, तीज आदि अनेक पर्व एवं कर्म-कांड के लिए परिवार में पुत्र का होना नितांत आवश्यक माना गया है। इस प्रकार परिवार में पुत्र प्राप्त करने के लिए माताएं गर्भ धारण करती हैं, क्यों तक गर्भ धारण करने के अज्ञानता एक पुत्र के इंतजार में एक नहीं दो नहीं तीन नहीं बल्कि दस से बारह कन्याएं जन्म ले लेती हैं अनचाहे संतान की जनसंख्या वृद्धि एवं कन्या भ्रूण हत्या का मूल कारण है।
2. इस प्रकार जिस देश एवं समाज में यार है वहां परिवार में कन्या को प्रधान माना गया है क्योंकि कन्या ही पृष्ठ की मूल है कन्या घर की लक्ष्मी है जगत जननी है वही कन्या कभी ना कभी बेटी बहन साथ आदि रूपों में संबंध बनाते हैं कन्या नहीं तो दृष्टि नहीं आप जैसी मान्यताएं हैं इस प्रकार कन्या प्राप्त करने की भावनाओं से एक कन्या के इंतजार में दस-बारह पुत्र जन्म ले लेते हैं नहीं यही अनचाहे संतानों की जनसंख्या वृद्धि एवं भ्रूण हत्या का मुख्य कारण है।